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Thursday, October 09, 2008

क्षणिकाएं


(१)
जल
छू सकता
महसूस कर सकता
छाया को
लेकिन, अपने साथ
बहा नही सकता
(२)
छाया
लिपट सकती
चूम सकती
जल से
लेकिन, उसमें
नहा नही सकती
(३)
पेड़
अचल तन मन
मनस्वी
नदी छाया के
खेल से अविचलित
तपस्वी
(४)
नदी
पहाड़ से बिछडती
विलाप करती
कितनी शांत
जब सागर से
मिलाप करती
(५)
पहाड़
उर की आग
मन का गुबार
घुटन का उभार
(६)
बादल
रुई के
उड़ते फोहे नम
पहाड़ के जख्मों पर
लगाते मरहम
(७)
फूल
अम्बर को
स्वीकार
माटी का
आभार
.
विनय के जोशी

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

जल
छू सकता
महसूस कर सकता
छाया को
लेकिन, अपने साथ
बहा नही सकता
(२)
छाया
लिपट सकती
चूम सकती
जल से
लेकिन, उसमें
नहा नही सकतीवाह! विनय जी.
अच्छी अभिव्यक्ति है. बधाई

श्रीकांत पाराशर का कहना है कि -

Bahut khoob,Dekhan men chhote lagen ghav karen gambheer.uttam.

neelam का कहना है कि -

विनय जी ,
प्रकृति के साथ मनोभाव का अद्भुत सामंजस्य ,अनुपम है
नदी
पहाड़ से बिछडती
विलाप करती
कितनी शांत
जब सागर से
मिलाप करती
(५)
पहाड़
उर की आग
मन का गुबार
घुटन का उभार
(६)
बादल
रुई के
उड़ते फोहे नम
पहाड़ के जख्मों पर
लगाते मरहम

Nikhil का कहना है कि -

जल
छू सकता
महसूस कर सकता
छाया को
लेकिन, अपने साथ
बहा नही सकता

बहुत अच्छी बन पड़ी हैं......
सबसे अच्छी बात कि पूरी श्रृंखला को एक कविता के रूप में भी पढा जा सकता है....

निखिल

अभिन्न का कहना है कि -

सुन्दर व प्राकृतिक सौन्दर्य से अठखेलियाँ करती क्षणिकाएं

दीपाली का कहना है कि -

"नदी
पहाड़ से बिछडती
विलाप करती
कितनी शांत
जब सागर से
मिलाप करती"
मुझे ये बहुत अच्छा लगा.

प्रदीप मानोरिया का कहना है कि -

सुंदर क्षणिकाएं

विपुल का कहना है कि -

विनय जी.. बहुत समय बाद आपकी क्षणिकाएँ पढ़ी.. कृपया इस शानदार काम को ज़ारी रखें..
साहित्य के सारे तत्व मौज़ूद हैं इनमें.. अत्यंत स्तरीय और सुंदर लेखन..!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुंदर क्षणिकाएं

Anonymous का कहना है कि -

जल
छू सकता
महसूस कर सकता
छाया को
लेकिन, अपने साथ
बहा नही सकता

फूल
अम्बर को
स्वीकार
माटी का
आभार


सभी सुंदर है पर ये खास कर अच्छी लगी
सादर
रचना

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