फटाफट (25 नई पोस्ट):

Thursday, October 09, 2008

क्षणिकाएं


   1>
मेरे कमरे की हवाएं 
खुशबूदार हैं 
अभी भी 
तेरी याद 
बैठी है खुली खिड़की पर 
2>
कल
तुम नही रहीं ,
मेरी लाश अब भी
जनाजे के इंतजार में है
  3>
मुझे 
मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ 
किस पापी ने 
धर्म बनाया 
  4>
मेरी नींद 
शायद तुम्हारे पास रह गई  है
कल ही आलपिन से 
खोंसी थी तुमने,अपने  दुपट्टे में 
  5>
उसने कहा था 
मुझे कभी प्यार नही हो सकता -
मैं हर बात को 
दिल से जो लगा बैठता हूँ 
  6>
मैंने कल 
शाम को सूली पर लटका दिया
कह रही थी ,
तेरे लिए रुक नही सकती 
 7>
सपने देखना 
खतरनाक है 
कल 
तेरे कहने पर 
रोक दिया था मैंने 
पृथ्वी का घूमना 
            -आलोक शंकर

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

20 कविताप्रेमियों का कहना है :

दीपाली का कहना है कि -

मेरे कमरे की हवाएं

खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर

उसने कहा था
मुझे कभी प्यार नही हो सकता -
मैं हर बात को
दिल से जो लगा बैठता हूँ

कम से कम शब्दों में आपने अपनी भावनाओ को खूब रस में भिगोया है.

Reetesh Gupta का कहना है कि -

भई बहुत अच्छी लगी क्षणिकायें...बधाई

Harihar का कहना है कि -

आलोक जी
आप बस गजब ही लिखते हैं

मजा आ गया

Saurabh Sahay का कहना है कि -

मुझे मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ
किस पापी ने
धर्म बनाया .........gazab ka likhte ho yaaar tum....mein to kaayal ho gaya :)

Kavi Kulwant का कहना है कि -

kuch kshanikaayen achchi hain..

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

किस क्षणिका की भावनाओं को अधिक अच्छा कहूँ?
कोई कम नहीं,सभी दिल से होकर गुजरते हैं.....

neelam का कहना है कि -

असंभव को सम्भव बनाना तो आप जैसे कवियों के बस की ही बात है
सपने देखना
खतरनाक है
कल
तेरे कहने पर
रोक दिया था मैंने
पृथ्वी का घूमना

विपुल का कहना है कि -

क्षणिकाओं का मौसम वापस आ रहा है शायद..
आलोक जी तबीयत खुश कर दी अपने .. बहुत खूब.. इसका तो जवाब नहीं..

मेरी नींद
शायद तुम्हारे पास रह गई है
कल ही आलपिन से खोंसी थी तुमने
अपने दुपट्टे में

Unknown का कहना है कि -

मुझे
मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ
किस पापी ने
धर्म बना

वाह!! क्या पंक्तियाँ है सुभानाल्लाह.... :)

-स्वाति

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सागर में मणिकायें तो सम्भव है
मणिकाओं में सागर, असम्भव
हूह ! क्षणिकायें पढते तो ऐसा न कहते !

mohit का कहना है कि -

grt yaar. i m enthralled. superb. i had this feeling that worte only veer ras. keep up the good work. and do keep sending the link or new additions

Anonymous का कहना है कि -

मुझे ये बहुत अच्छी लगी

खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर

सादर\
रचना

Sajeev का कहना है कि -

अलोक जी बहुत दिनों बाद आपकी कलम ने पुराना जौहर दिखलाया है, इसी की आपसे अपेक्षा रहती है, सभी क्षणिकाएं बेहद सरल शब्दों में बड़ी बात कहती है, excellent

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

आलोक जी-
आपकी सभी क्षणिकाएँ तो नहीं लेकिन एक क्षणिका ने मुझे बहुत प्रभावित किया--
मेरी नींद
शायद तुम्हारे पास रह गई है
कल ही आलपीन से
खोंसी थी तुमने, दुपट्टे में।
--बधाई।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Straight Bend का कहना है कि -

मेरे कमरे की हवाएं
खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर
Yeh wala achcha laga. Baki theek-thaak hain.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

पहली और तीसरी क्षणिका पसंद आई।

Unknown का कहना है कि -

क्षणिकाए ज्यादा प्रभावी नही लगी

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

क्षणिकाए ज्यादा प्रभावी नही लगी

सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

bahut khoob !!!
likhna sarthak hua .
Badhaii

प्रशांत मलिक का कहना है कि -

सपने देखना
खतरनाक है
कल
तेरे कहने पर
रोक दिया था मैंने
पृथ्वी का घूमना

ye achchi lagi

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)