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Wednesday, November 05, 2008

तेरी आँच में, हर खुशी, हर गम, खाक हुआ


कलिंग
[एक-आजाद नज़्म ]

हर चेहरे पे था शिकस्त का धुँआ
कहते हो कैसे इसे, फतेह का कारवां

दिन करता है मीलों-मील, सफर
रात कटती है, लम्हा दर लम्हा

थकान, लाचारी, बेबसी, बेख्याली थी
लबरेज दु:ख से, हर किसी की प्याली थी

तेरे करीब जो भी आया, हलाक हुआ
तेरी आँच में, हर खुशी, हर गम, खाक हुआ

सीख के गया जो तुझसे इल्म
इल्मो हुनर से बेबाक हुआ

तेरी भी ऐ कलिंग अजीब मस्ती है
झुकी तेरे रूबरू प्रियदर्शी हस्ती है

नेस्तोनाबूद होकर भी जीता रहा है तू
हर रूह का फटा दामन सीता रहा है तू

जीतकर तुझको जश्ने फतह न कर पाया अशोक
कैसे थे तेरे जख्म, तेरा लहू, तेरा सोग

सोगवार होना पड़ा उसको भी यहाँ
हर चेहरे पे था शिकस्त का धुआँ

देख कर तेरी बरबादी, रो दिया था सम्राट
छोड़ दिए उसी रोज से, सारे शाही ठाठ-बाट

रोता था और अश्क बहता था वो
अपने किए पर बार-बार पछताता था वो

पीछे मुड़ता था, मुँह छुपाता था, वो
हर बार तबाही को सामने पाता था वो

बड़ी किल्लत थी, बड़ी बेजारी थी
उसने कलिंग जीता था, पर बाजी हारी थी

उसके जहन में, उमड़ रहे थे अश्कों के बादल
उसकी रूह में उठ रही थी, आँधियाँ पागल

छोड़ के कत्ले-आम, अहिंसा को अपनाना पड़ा
महलों को त्याग, फकीरों की राह जाना पड़ा

तब भी क्या मिल पाया था उसे, सकून
उतर गया था उस पर से, जंग का जुनून

जिस तरफ भी जाता था, रोने की सदा आती थी
सोने न देती थी, हर पल जगा जाती थी

उसके हाथों से, शमसीर छूटी थी
जान लिया था उसने, कि तकदीर फूटी थी

हर कतराए-लहू से, गुल उगाए, उसने
अमन की जय बोली, अहिंसा के परचम, फहराए उसने

आज फिर से तुझको उठना होगा कलिंग
सरगोशी करने लगी है, फिर जंग

आज फिर सब हाथों में हैं तलवारें
जहर उगलने लगी है हर जुबां

हर रूह में है अन्धेरा सा कुआँ
हर चेहरे पर है शिकस्त का धुआं

नहीं याद उन्हें हिरोशिमा नागासाकी है
पोखरण की राख में ब्रह्मास्त्र की राख बाकी है

बुद्ध हंसता है¹ वे कहते हैं
बारूदी सुरंगों में पागल रहते हैं

जब सुरंग फटेगी तो कहकहे ढह जाएंगे
एक बार फिर जमींदोज दोजखी गढ्ढे रह जाएंगे।

शेष रह जाएगी गीदड़ों की हुआँ-हुआँ
हर चेहरे पे होगा फिर शिकस्त का धुआँ।

¹बुद्ध हँसता है-विडम्बना देखिए पोखरण १ विस्फोट का कोड वर्ड [संकेत शब्द ] था बुद्ध हँस रहा है।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजना का कहना है कि -

जब सुरंग फटेगी तो कहकहे ढह जाएंगे
एक बार फिर जमींदोज दोजखी गढ्ढे रह जाएंगे।

.........
वाह ! बहुत बहुत सुंदर रचना..
एकदम सत्य कहा आपने.पता नही कब लोग चेतेंगे.इतिहास से जब सीख नही ले उसे गुजरी कहानी बना देते हैं तो इंसानियत ऐसे ही तोप के मुंह पर खड़ी मिलती है.

Anonymous का कहना है कि -

आप भी क्यों यहाँ हैं इन नासमझों में कवि जी ,अच्छी रचना है पर कौन ?

Anonymous का कहना है कि -

दिन करता है मीलों-मील, सफर
रात कटती है, लम्हा दर लम्हा

जीवन में कभी कभी एसा ही होता है

नहीं याद उन्हें हिरोशिमा नागासाकी है
पोखरण की राख में ब्रह्मास्त्र की राख बाकी है

सच कहा है मुझे बहुत अच्छी लगी ये आजाद नज़्म

Anonymous का कहना है कि -

khoobsoorat nazam badhyee,subhash

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

कलिंग के माध्यम से सत्य से अवगत कराना.... मुझे बहुत पसंद आई कविता... अंत में मुँह से निकला... "क्या बात है!!!"..

धन्यवाद श्याम जी...

सीमा सचदेव का कहना है कि -

श्याम जी आपकी नज्म ने इतिहास याद दिला दिया लेकिन जरूरत है हमें उस इतिहास को सीखने की न की दोहराने की | हम जानते है परिणाम फ़िर भी कुछ नही सीखते | बहुत सुंदर रचना | बधाई....सीमा सचदेव

Unknown का कहना है कि -

श्याम जी,
ये नज़्म मैने कल पढी तो ज्यादा अच्छी नही लगी शायद उस वक्त मेरा कुछ पढने का मन नही था, पर आज पढते ही नज्म के भाव समझने मे देरी नही लगी

नज्म बहुत ही ज्यादा अच्छी लगी
वाह क्या लिखा है आपने

सुमित भारद्वाज

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

भाई यह तो बहुत बढ़िया है। कड़वी सच्चाई है।

अनाम जी,

कम से कम आप तो समझते हैं। श्याम जी यहाँ लिखने वाले कवियों को के लिए आप जैसे सुधी पाठकों के लिए ही लिखते हैं। अपने अमूल्य विचार देते रहें।

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