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Thursday, November 20, 2008

फ़ौरन -फ़ौरन .......................


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जित और देखूं हर शै है हो गई "फ़ौरन"
सुना पलकें झपकेगी अब और भी फ़ौरन

ये नहीं ये बात मालूम ही थी मुझको
हैरत हुई जब उलफत भी माँगी फ़ौरन

कहाँ गए वो "इन्सां", वो नरम-दिल वाले
क्यों लोगों की आँख अब सूख जाती फ़ौरन

दुनिया यूँ तो मेरी है पर रही हरदम आगे
मिलाऊँ कदम जब तक मुड जाती फ़ौरन

कितने लबालब है दूकानो-बाज़ार यहाँ
क्यों नहीं फिर ये गरीबी हटती फ़ौरन

यूँ तो चीज़ बिकने बेवक्त भी दुकां खुल जाए
क्या नज़ीर*, वफ़ा-ओ-भीख नहीं मिलती फ़ौरन
(नज़ीर=तुलना/match)

अब तसवीरें और इश्तेहार ही बनी खबरें
ख़बर अखबार में भी नहीं मिलती फ़ौरन

शुक्र है बच्चों के मासूमियत नहीं बदली
उनकी गलती पे हंसो, उन्हें हंसी आती फ़ौरन !

(अब देखोगे जब किसी बच्चे को यूँ हँसते
तो इस शेर, इस शायरा की याद आएगी फ़ौरन :-)

रिझाने मुझे ज़माने, तेरी तकनीक बेकार
खिलौनों से तेरे तबीयत उकता गई फ़ौरन

तुझ जैसे तेरी खुशियाँ भी है, ज़माने, "फ़ौरन"
क्यों नही बनाता कुछ हो गम में कमी फ़ौरन

क्या है बदला ज़मानों से अब तलक आख़िर
दिन तो कटता है, शबे-गम नहीं कटती फ़ौरन

खुदा बस! अब इस 'माया' से मुझे ले चल
हो रहम इतना मिले ज़ीस्त नयी फ़ौरन
(ज़ीस्त=ज़िन्दगी)

~RC
जून 08
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(पुरानी रचना है, जब काफिया और रदीफ़ से आगे ग़ज़ल का ज्ञान था |
ज़्यादा तबदीलियाँ करते हुए जैसी बनी थी, पोस्ट कर रही हूँ

दूकानो-बाज़ार = दूकान और बाज़ार, उर्दू में 'और' लिखने का एक खूबसूरत तरीका )

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Straight Bend का कहना है कि -

टिपण्णी जो भी हो, वे लोग जो दो मिनट निकालकर टिपण्णी करते हैं, उनका शुक्रिया अदा करने और अगर कोई सवाल हो तो उनके जवाब देने मैं अक़्सर एक-दो दिनों बाद (अपने पोस्ट पर) अपनी टिपण्णी पोस्ट करती हूँ | पता चला तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है, नए पोस्ट आ जाते हैं |

कुछ आफिस की बंदिश है कुछ मसरूफियत, के सवालों/सुझाओं पर प्रतिकिया करने में देर हो जाती है | कोशिश करूंगी के वक्त पर जवाब दे सकूं |

शुक्रिया !
RC

Anonymous का कहना है कि -

मुझे लगा इससे भी अच्छी रचना आप कर सकती थी!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत देर पीछे चला मैं उसके खा-म-खा ही
समझा आया 'बजा हौरन निकल फौरन'

आपकी फौरन बहुत बढिया लगी जी..
इसलिये फौरन हौरन बजाने आ गया

होरन बोले तो शंखनाद...
बधाई हो....

रचना भले ही पुरानी है
पर बड़ी ही सुहानी है
काफ़िया रदीफ है या नही
अंजान है राघव अज्ञानी है

neelam का कहना है कि -

aap ko kuch likhne waali hi thi ki najar raaghav ji ke comment par pad gayi ,aur hasi si nikal hi gayi .

शुक्र है बच्चों के मासूमियत नहीं बदली
उनकी गलती पे हंसो, उन्हें हंसी आती फ़ौरन !
hume pasand aaya .

neelam का कहना है कि -

nikhil ji aap ke comments kahaan hian ,hum intjaar kar rahe hain.

manu का कहना है कि -

kya kahoon? aapne khud hi kah dala.

Anonymous का कहना है कि -

क्या है बदला ज़मानों से अब तलक आख़िर
दिन तो कटता है, शबे-गम नहीं कटती फ़ौरन
कितने लबालब है दूकानो-बाज़ार यहाँ
क्यों नहीं फिर ये गरीबी हटती फ़ौरन
बहुत सुंदर जब पढ़ना शुरू किया तो लगा फौरन से क्या बनेगा पर इतने सुंदर शेर लिखे आपने की मजा आगया
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

(अब देखोगे जब किसी बच्चे को यूँ हँसते
तो इस शेर, इस शायरा की याद आएगी फ़ौरन :-)

बिल्कुल याद आयेगी रूपम जी...

गज़ल पढ़ते हुए लगने लगा था कि शुरुआती गज़ल है। अच्छी तो और हो सकती थी। पर फिलहाल चलेगा.. :-)

कुछ शे’र पसंद आये:

दुनिया यूँ तो मेरी है पर रही हरदम आगे
मिलाऊँ कदम जब तक मुड जाती फ़ौरन

Anonymous का कहना है कि -

achha likha hai aapne halanki aur bhi achha aap kar sakti thin par aisa ho hi jata hai kuchh rah sa jata hai amuman.
ALOK SINGH "SAHIL"

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